जालनदहर के स्वागत ालमदारस में सभा हुई और सभा के अंत में कहाना लगा .. हस्तर खवान पर मौलाना अता अल्लाह शाह बुखारी अल विश्लेषण किसी तहे .. उनकी नज़र एक युवा ईसाई पर पड़ी तो उसे कहा .. "बहाई कहाना कहा लो. . "
ईसाई ने कहा .. "जी मैं तो बहनगी हूँ .."
शाह जी दर्द बहरे स्वर में कहा .. "इंसान हो और बहोक तो लगती है .." यह कहकर ाटहे और और हातह दहला अपने प्रयोग के साथ बटहा लिया.
वह बेचारा तहर तहर कांप तहा और कहता जाता तहा .. "जी मैं तो बहनगी हूँ .."
शाह साहब खुद लकमह बनाकर उसके मुंह में डाला .. यह हिजाब और डर कुच्छ दूर हुआ तो राजा साहब ने एक आलू उसके मुंह में डाल दिया .. जब वह आदहा आलू काट लिया तो बाकी आदहा शाह साहब खुद कहा लिया. इसी तरह पानी पिया तो उसका बचाया हुआ पानी विश्लेषण किसी शाह साहब ने पी लिया.
समय गुजर गया और ईसाई कहाना कहा कर गायब हो गया .. पर रिक़्क़ते तारी तही .. वह खूब रोया और उसकी स्थिति बदल गई .. वर्तमान समय वे ईसाई अपनी युवा पत्नी और बच्चे को लेकर आया और कहा. . "शाह जी जो प्यार की आग लगाई है वह बजहाएँ विश्लेषण किसी आप .. अल्लाह के लिए हमें कलमह पड़हा कर मुसलमान करें .." मियां बीवी दोनों मुसलमान हो गए.
ोह झुर्रियां दलबरी या नवाये मुग्ध ..!
जो दिल जीत ले वही विजेता जमाना ..!
बुखारी बातें .. स 29.30
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