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Tuesday, 9 September 2014

विश्वविद्यालय से..!

विश्वविद्यालय से कक्षा ऑफ होने में मोटर बाइक को लात लगाई और घर की ओर रवाना हुआ .. कच्ची पक्की सेवा लेन पर स्थानीय कॉलेज लड़की तेज कदम उठाती बस स्टॉप की ओर बढ़ रही थी .. उसके बिल्कुल िकब एक लड़का भी उसी चाल में चला जा रहा था जो कुछ दूरी पर दो लड़के थोड़ा धीरे चले जा रहे थे .. अचानक लड़के का हाथ उठा और लड़की उड़ते आंचल को पकड़ लिया.
वह चाँद चेहरा सितारा आँखें जैसे एक पल में अंचल के रंग की तरह पीले पड़ गए .. पहले से वह लड़की चकरा कर गिर पड़ती मैंने बाइक को सड़क पर खड़ा किया और लड़की की मदद पहुंचने तक आसपास के वातावरण की समीक्षा लिया .. आंचल को लड़के की गिरफ्त से मुक्त करवाते और दो ​​थप्पड़ रसीद कर तक उसके दोनों साथी भी मौके पर पहुंच चुके थे.
किस्सा कम,,,,,, भारोत्तोलन 'बॉडी बिल्डिंग और विश्वविद्यालय एथलेटिक्स टीम का सदस्य होने की वजह से तीनों लड़कों पर पूरी तरह हावी हो चुका था कि अचानक कुछ पहलू में घुस गया .. दर्द की तीव्रता लड़कों छोड़ कर देखा तो एक लंबे तड़ंगे व्यक्ति जो दिखने में हरा मुख्य लग रहा था हाथ चार इंच लंबा बारीक चाकू थामेदोसरे वार के लिये तैयार खड़ा था ..
चूंकि इसका दूसरा वार दाहिने हाथ पर रोका जिससे रंग उंगलियों बुरी तरह घायल हो गई लेकिन हाथ पकड़ में आने की वजह से चाकू छीन लिया .. लोगों को इकट्ठा होते और चाकू मेरे हाथ में देखकर चारों ने भागने की राह अपनाई. . ज्यादा खून बहने की वजह से नक़ाहत बढ़ती जा रही थी सो एक बार फिर बाइक स्टार्ट की और अस्पताल पहुंचा .. कुछ ही घंटों में एक्स रे और आवश्यक मरहम पट्टी के बाद डॉक्टर ने मुझे अस्पताल से छुट्टी करवा दिया .. खैर यह दिल्ली खुशी थी कि किसी मज़मोम महत्वाकांक्षाओं मेरी हस्तक्षेप से खाक हुए.
मित्रों मन !!!!!! बात अगर यहीं खत्म हो जाती तो शायद यह घटना कभी गोश गुजार करता .. वास्तव सबक आमोज़ पहलू यह है कि अब कहा जा रहा है.
दो सप्ताह बाद चौक को पार करने के बाद किसी आवाज बाइक रुकने पर मजबूर किया .. एक दाढ़ी वाले साहब थे मोटर बाइक पर जिनके साथ वह पीले आंचल लड़की थी .. सलाम दुआ हुई तो फ़रमाया लगे कि थोड़ा समय चाहिए कुछ बातचीत करना है.
मन में विचार आया कि धन्यवाद करना चाह रहे होंगे तो मैं क्षमा करना चाहिए .. आग्रह पर पास ही फास्ट फूड का रुख किया .. मेरे लिये Cappuccino पर्याप्त आडर दिया और अपने लिये चाय लेकर गए .. मैं इंतजार करने लगा कि साहब किया कहते हैं.
"मेरा नाम अशरफ है और इस्लामाबाद में सरकारी कर्मचारी हूँ .. अधीक्षक के पद पर काम कर रहा हूँ .." वह थोड़ा तोकफ से कहना शुरू किया .. ऐसा लग रहा था कि वे फैलाने शब्द समेट कर कुछ कहना चाह रहे थे लेकिन शब्दों जैसे किसी वाक्य का रूप धार पहले ही बिखर जाते थे .. "इस घटना के बाद दिन बेटी अपने कॉलेज छोड़ा और लेता हूं .. केवल इस उम्मीद में कि किसी दिन आप मुलाकात हो जाए और माफी मांग सकूं. "अशरफ साहब बात बढ़ाते हुए कहना शुरू किया.
"मुझसे माफी .. किस बात की ..? समझा नहीं .." मैंने जवाब दिया.
"जिस दिन यह घटना घटी मेरी बेटी घर पहुंचकर बहुत रोया और सारा किस्सा अपनी मां को सुनाया .. यह बुरी तरह सहम गयी थी .. शाम तक रोती और माँ को भी रुलाती रही .. रात में खाना देते हुए उसकी माँ मुझे सारी बात बताई. मुझसे कुछ भी खाया गया और फिर सुबह तक रोता रहा. आंसू थे कि थमने का नाम नहीं लेते .. पीड़ा और ाज़यत स्थिति थी कि दम घटा जाता था .. जाड़े के रथ के बावजूद पसीना सुखाने आता था.
इतनी लंबी रात में कटती थी .. पशीमानी 'लज्जा और अफसोस की भयानक रात आज़ान सुबह में इस तरह समाप्त हुआ कि प्रार्थना करके मैंने बेटी और उसकी माँ को जगाया .. अल्लाह सर्वशक्तिमान और इन दोनों से माफी मांगी कि तुम्हारा दोषी हूँ कि जो आज से बाईस साल पहले साइकिल पर कॉलेज जाते हुए एक लड़की दुपट्टा खींचा था और शर्मिंदगी महसूस करते हुए छोड़ कर भाग गया था.
देवी! मेरी ख़ता यहीं तक थी जो तूने मुझे कानून कुदरत के तहत बता करवा दी .. सो मैं तुझ से माफी सुाज्यगार हूँ .. मेरे पाप की सजा से बढ़कर मुझे और क्या मिलेगा कि अपनी बेटी के सामने आप भी माफी मांग रहा हूं. "
अशरफ साहब मेरे सिर पर दयालु हाथ फेर कर जा चुके थे जबकि कॉफी और चाय के भरे हुए डसपोज़ेबल कपस को देखकर उसकी खोई हुई खुशी फिर पाने की कोशिश कर रहा था कि पिछले दो हफ्तों से मैं मखमोर किये थी.
वह रात जाग कर जीने और सोचने की अब मेरी बारी थी कि प्रकृति कैसे हमारे किये हमें ही लौटा देती है ...........!
लेखन .. डॉक्टर सुनील जाफ़री.

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