ASSALAM ALIEKUM MARKAZ E IRFANIYA KE QAYAAM KA MAQSAD SIRF OR SIRF INSANIYAT KO FAIDA PUHENCHANA HAI ,KE IK DUSRAY KI MADAD KARNE MAY HI HAQEQI KAMYABI HAI ,INSAAN KO SIRF INSAAN SAMJH KAR USKI MADAD KAREN NA KISI MAZHAB NA KISI FIRQAY NA KISI RUNG KI BUNYAAD PAR. AEN AP BHI IS KAAM MAY HAMARA SAATH DEJEYEA..
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Monday, 29 September 2014
ख़रत डर रखने वाले हजरत...!
ख़रत डर रखने वाले हजरत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह अलैह एक बार एक अंतिम संस्कार के साथ कब्रिस्तान गए. कब्रिस्तान में अलग जगह बैठ कर सोचने लगे. किसी ने पूछा. अमीरुल! आप उत्तर विलय हैं. आप अलग जाकर बैठ गए. कहा! हाँ मैं एक कब्र ने आवाज़ दी. मुझे यूं कहा: हे उमर इब्न अब्दुल अजीज! मुझे तो यह नहीं पूछता. मैं आने वाले के साथ क्या करता हूँ. मैंने कहा. तो जरूर बता. उसने कहा. उसका कफ़न फाड़दयती हूँ. शरीर के टुकड़े कर देती हूँ. मांस खा जाता हूं और बताऊँ आदमी के जोड़ों के साथ क्या करती हूँ. कंधों को बाज़उं से अलग करती हूँ, कलाईवं को पहुँचों से, पिंडलियों को बदन से सरीनों को जांघों से अलग करती हैं, यह कहा कि उम्र अजीज रोने लगे. कहा! दुनिया की स्थापना बहुत थोड़ा है. इसमें जो प्रिय है. भविष्य में अपमानित है. इसमें जूदोलत वाला है. इसके बाद वह फकीर है. आह! उनके प्रिय संबंधी, रिश्तेदार, पड़ोसी, हर समय दलदारी तैयार रहते थे. लेकिन अब क्या हो रहा है? आवाज देकर उनसे पूछना गकृरही है. गरीब, अमीर. सभी क्षेत्र में पड़े हुए हैं. उनके अमीर से पूछा, उनके धन क्या काम किया. उनके फकीर से पूछा, यह गरीबी उसे नुकसान दिया. उनकी भाषा पूछ बहुत चहकती थी. उनकी आँखों को देखकर हर समय देखती थीं. उनके नाजुक बदन पता कहां गया. कीड़े उन सब का क्या हश्र किया. उनके रंग काले दिए उनके मुंह परमिट डाल दी. आह! कहाँ हैं उनके वे आरामदायक कमरे जिनमें वे आराम करते थे. कहाँ हैं उनके वे माल और खजाने जिन्हें जोड़ रखते थे. उनके हश्म ोखदम कब्र में उनके लिए कोई बिस्तर न रखना. कोई तकिया न रख दिया बल्कि जमीन पर डाल दिया. अब वह बिल्कुल अकेले पड़े हैं. उनके लिए अब रात दिन बराबर है. आंखें निकलकर मुंह गिर गई. गर्दन अलग हुई पड़ी है. मुंह से पीप बह रही है. सारे बदन में कीड़े चल रहे हैं. इस हाल में पड़े हैं कि उनकी बीवियों ने दूसरे निकाह कर लिए. वह मजे ाड़ारही हैं. बेटों ने मकानों पर कब्जा कर लिया. वंशजों धन वितरित किया. यह थे अल्लाह वाले. भविष्य के डर वाले. कहते हैं कि एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि हज़रत उमर बिन अब्दुल अजीज का निधन हो गया. ानाललह वाना अलैहि राजावन. जज़ाक अल्लाह .. धर्मार्थ ... उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ जीवन से ... एक उत्कृष्ट घटना .. चयनित ... यह था हमारे ासलाफ. यह थे अपने विश्वासों.
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